टोंक शहर की सड़कों पर चलते हुए आपको ऐसा लगेगा जैसे आप किसी बाधा दौड़ में हिस्सा ले रहे हैं। करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी RUIDP के कार्यों का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला है। मुख्य बाजारों से लेकर गली-मोहल्लों तक हर जगह टूटी-फूटी सड़कें मानो शहर के हालात का मजाक उड़ा रही हैं। महीनों से खुदी हुई सड़कों का पेचवर्क और निर्माण कार्य ठप पड़ा है। बरसाती पानी से भरी इन सड़कों पर आए दिन हादसे हो रहे हैं।
RUIDP के अधिकारी और कर्मचारी इस मामले में शायद ‘अनजान बने रहने’ का प्रशिक्षण ले रहे हैं। सड़कों की स्थिति में सुधार करने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। शहर के लोग रोज़मर्रा की जिंदगी में इस समस्या से जूझ रहे हैं, लेकिन प्रशासन की नींद नहीं टूट रही। शहर की जनता पूछ रही है, “क्या करोड़ों रुपए खर्च करने का यही नतीजा है?” शायद अधिकारियों को लगता है कि सड़कों की हालत सुधारने के लिए ‘दुआ’ ही काफी है। शहर के लोग अब इन टूटी-फूटी सड़कों से त्रस्त हो चुके हैं और चाहते हैं कि RUIDP तत्काल कदम उठाए और सड़कों की स्थिति सुधारे।
कहते हैं, “सड़कें शहर की धड़कन होती हैं,” लेकिन टोंक की सड़कों की हालत देखकर लगता है कि यह धड़कन भी प्रशासन की लापरवाही से मंद पड़ गई है।आखिरकार, क्या यह संभव नहीं है कि करोड़ों खर्च करने के बाद भी हमें अच्छी सड़कें मिल सकें? या फिर हम बस इन खड्डों और गड्ढों के साथ ही जीना सीख लें? शायद प्रशासन के पास इसका जवाब हो, या शायद वो भी ‘अनजान’ ही बने रहेंगे!